Prime Minister Adarsh Gram Yojna (PMAGY)

प्रधानमंत्री आदर्श ग्राम योजना (पीएमएजीवाई) 

प्रधानमंत्री आदर्श ग्राम योजना (पीएमएजीवाई) का उद्देश्य 
प्रधानमंत्री आदर्श ग्राम योजना (पीएमएजीवाई) का उद्देश्य 50% से अधिक अनुसूचित जाति जनसंख्या वाले चुनिंदा गांवों का एकीकृत विकास सुनिश्चित करना है ताकि उन्हें ”आदर्श गांव” बनाया जा सके और वहां निम्नलिखित सुविधाएं उपलब्ध हों :-
गांवों के सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए वहां अपेक्षित सभी भौतिक सुविधाएं एवं सामाजिक अवसंरचना हो, जो अधिकतम संभव सीमा तक इस योजना के पैरा 2.1 में उल्लिखित मानदंडों के अनुरूप हो।
अनुसूचित जाति और गैर-अनुसूचित जाति जनसंख्या के बीच सामान्य सामाजिक-आर्थिक संदर्भ में (उदाहरणार्थ, साक्षरता दर, प्रारंभिक शिक्षा की पूर्णता दर, आईएमआर/एमएमआर, उत्पादक संपत्तियों का स्वामित्व, आदि के संदर्भ में) असमानता समाप्त हो और ये संकेतक कम से कम राष्ट्रीय औसत तक बढ़ाए जाएं; और
अनुसूचित जातियों के प्रति अस्पृश्यता, भेदभाव, पृथक्कीकरण और अत्याचार समाप्त हो और अन्य सामाजिक बुराइयां भी समाप्त हों जैसे लड़कियों/महिलाओं में भेदभाव, मद्यपान और नशीले पदार्थों (दवा) का दुरुपयोग, आदि तथा समाज के सभी वर्ग स्वाभिमान से एवं समानता पूर्वक रहें तथा सभी वर्गों में परस्पर सौहार्दता रहे।
पीएमएजीवाई योजना के मुख्य घटक 
इस योजना के दो मुख्य संघटक हैं :-
टेरिटोरियल क्षेत्र I – I संबंधित संघटक
कार्यात्मक क्षेत्र I – I संबंधित संघटक
1.1   योजना का पहला संघटक टेरिटोरियल स्वरूप का है और अलग-अलग गांवों पर केन्द्रित है तथा उसके दो उप-संघटक हैं;
चुनिंदा गांवों में केन्द्र और राज्य सरकारों की मौजूदा योजनाओं का कनवर्जेंट कार्यान्वयन, और
पीएमएजीवाई से अंतर-पाटन (गैप-फिलिंग) धनराशि, जिसमें केन्द्र सरकार का अंशदान 20.00 लाख रुपए प्रति गांव की औसत दर से होगा (जिसमें राज्य सरकार उचित, तरजीही तौर पर बराबर का अंशदान करेगी) ताकि चुनिंदा गांवों की पहचानशुदा विकासात्मक आवश्यकताओं की विशेष रूप से पूर्ति की जा सके, जिसकी पूर्ति केन्द्रीय और राज्य सरकारों की मौजूदा योजनाओं के तहत नहीं की जा सकती है।
1.2   कार्यात्मक क्षेत्र संबंधित संघटक का, अन्य बातों के साथ-साथ, आशय यह है कि प्रशासनिक तंत्र-व्यवस्था को सुदृढ़ बना कर इस योजना के कार्यान्वयन को सुकर बनाया जाए ताकि इस संघटक की योजना बनाकर उसे कार्यान्वित किया जाए, मुख्य कार्मिकों की क्षमता का निर्माण किया जाए, समुचित प्रबंधन सूचना प्रणाली का विकास किया जाए, आदि।
इस संघटक के लिए, राज्य सरकार टेरिटोरियल क्षेत्र संबंधित संघटक हेतु परिव्यय के 5% तक केन्द्रीय सहायता की पात्र होगी, जिसका 1% राज्य सरकारों को तकनीकी संसाधन सहायता और बेसलाइन सर्वेक्षण के लिए पहले ही जारी कर दिया गया है।
इस योजना को कार्यान्वित करने की कार्य पद्धति और मुख्य कार्यकर्त्ताओं को प्रशिक्षण
योजना का कार्यान्वयन राज्य सरकारों द्वारा किया जाएगा।  योजना के समग्र मार्ग-निर्देश और निगरानी के लिए, ग्रामीण विकास और सामाजिक न्याय के प्रभारी मंत्रियों की सह-अध्यक्षता में राज्य स्तर पर एक सलाहकार समिति गठित करनी होगी।  इसके अलावा, मुख्य सचिव की अध्यक्षता में राज्य स्तरीय संचालन एवं निगरानी समिति (एसएसएमसी) गठित करने की आवश्यकता होगी ताकि योजना के कार्यान्वयन की निगरानी की जा सके।  एसएसएमसी का सदस्य सचिव राज्य कार्यक्रम निदेशक, पीएमएजीवाई के रूप में काम करेगा।  इसी प्रकार, राज्य सरकार को जिला और ब्लॉक स्तरों पर इस योजना के कार्यक्रम निदेशक को नामजद करने की आवश्यकता होगी।  कार्यक्रम निदेशक अपने-अपने स्तरों पर पीएमएजीवाई के लिए मुख्य कार्यपालक के रूप में काम करेंगे।
इस योजना (i) बेसलाइन सर्वेक्षण और (ii) ग्रामीण विकास योजना के सफल कार्यान्वयन के लिए, विभिन्न स्तरों पर प्रमुख कार्यकर्त्ताओं को आवश्यक ओरिएंटेशन तथा प्रशिक्षण प्रदान करने की आवश्यकता होगी।  राज्य स्तरीय कार्यकर्त्ताओं और राज्य स्तरीय तकनीकी संसाधन सहायता (टीआरएस) संस्थान के लिए प्रशिक्षण का आयोजन केन्द्र सरकार द्वारा शीघ्र ही किया जाएगा।  इसके बाद, राज्य जिला स्तरों के टीआरएस संस्थानों से, इस कार्य की अपेक्षा, निचले स्तरों पर की जाएगी।
गांवों की पहचान
राज्य सरकार से यह अपेक्षा की जाति है कि वह केवल एक जिले से, यथा-संभव, पाइलट फेज में कवर की जाने वाली 50% से अधिक अनुसूचित जाति जनसंख्या वाले गांवों की अपेक्षित संख्या का पता लगाए ताकि उन पर ध्यान केन्द्रित किया जा सके।  तथापि, यदि राज्य आवश्यक समझता है, तो वह पर्याप्त कारणों सहित, दो या अधिकतम तीन समीपवर्ती जिलों से गांवों का चयन कर सकता है।
Source: http://socialjustice.nic.in/ 

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