भारत के राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविन्द का 72वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र के नाम सन्देश
भारत के राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद ने देश के 72 वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र के नाम कुछ सन्देश दिए. इसमें उन्होंने कहा कि भारत पर्व-त्योहारों की भूमि है. हमारे देश में अनेक प्रकार के त्यौहार मनाए जाते हैं. इन सभी त्योहारों को सभी लोग हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं.
उन्होंने आगे कहा कि इस बीते वर्ष में आई भयावह महामारी कोरोना जैसी बीमारी के फ़ैल जाने के बावजूद हमारे किसान भाई-बहनों ने जो बहादुरी और कर्तव्यनिष्ठा का उदहारण प्रस्तुत किया है उसके लिए मैं उनका ह्रदय से अभिनन्दन करता हूँ. इन लोगों ने इस विषम परिस्थितियों में भी अपना कर्तव्य नहीं भूला और देश को कभी भी खाद्यान्न की कमी नहीं होने दी.
राष्ट्रपति सचिवालय
भारत के राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविन्द का 72वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र के नाम सन्देश
25 JAN 2021
मेरे प्यारे देशवासियो,
नमस्कार!
विश्व के सबसे बड़े और जीवंत लोकतन्त्र के आप सभी नागरिकों को देश के 72वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर हार्दिक बधाई! विविधताओं से समृद्ध हमारे देश में अनेक त्योहार मनाए जाते हैं, परंतु हमारे राष्ट्रीय त्योहारों को, सभी देशवासी, राष्ट्र-प्रेम की भावना के साथ मनाते हैं। गणतन्त्र दिवस का राष्ट्रीय पर्व भी, हम पूरे उत्साह के साथ मनाते हुए, अपने राष्ट्रीय ध्वज तथा संविधान के प्रति सम्मान व आस्था व्यक्त करते हैं।
आज का दिन, देश-विदेश में रहने वाले सभी भारतीयों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। आज ही के दिन, 71 वर्ष पहले, हम भारत के लोगों ने, अपने अद्वितीय संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित किया था। इसलिए, आज, हम सभी के लिए, संविधान के आधारभूत जीवन-मूल्यों पर गहराई से विचार करने का अवसर है। संविधान की उद्देशिका में रेखांकित न्याय, स्वतंत्रता, समता और बंधुता के जीवन-मूल्य हम सबके लिए पुनीत आदर्श हैं। यह उम्मीद की जाती है कि केवल शासन की ज़िम्मेदारी निभाने वाले लोग ही नहीं, बल्कि हम सभी सामान्य नागरिक भी इन आदर्शों का दृढ़ता व निष्ठापूर्वक पालन करें।
लोकतन्त्र को आधार प्रदान करने वाली इन चारों अवधारणाओं को, संविधान के आरंभ में ही प्रमुखता से रखने का निर्णय, हमारे प्रबुद्ध संविधान निर्माताओं ने बहुत सोच-समझकर लिया था। इन्हीं आदर्शों ने हमारे स्वतंत्रता संग्राम को भी दिशा प्रदान की थी। बाल गंगाधर ‘तिलक’, लाला लाजपत राय, महात्मा गांधी और सुभाष चन्द्र बोस जैसे अनेक महान जन-नायकों और विचारकों ने हमारे स्वतंत्रता संग्राम को प्रेरित किया था। मातृभूमि के स्वर्णिम भविष्य की उनकी परिकल्पनाएं अलग-अलग थीं परंतु न्याय, स्वतंत्रता, समता और बंधुता के मूल्यों ने उनके सपनों को एक सूत्र में पिरोने का काम किया।
मैं सोचता हूं कि हम सबको, अतीत में और भी पीछे जाकर, यह जानने का प्रयास करना चाहिए कि यही मूल्य हमारे राष्ट्र-निर्माताओं के लिए आदर्श क्यों बने? इस का उत्तर स्पष्ट है कि अनादि-काल से, यह धरती और यहां की सभ्यता, इन जीवन-मूल्यों को संजोती रही है। न्याय, स्वतंत्रता, समता और बंधुता हमारे जीवन-दर्शन के शाश्वत सिद्धांत हैं। इनका अनवरत प्रवाह, हमारी सभ्यता के आरंभ से ही, हम सबके जीवन को समृद्ध करता रहा है। हर नई पीढ़ी का यह दायित्व है कि समय के अनुरूप, इन मूल्यों की सार्थकता स्थापित करे। हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने यह दायित्व, अपने समय में, बखूबी निभाया था। उसी प्रकार, आज के संदर्भ में, हमें भी उन मूल्यों को सार्थक और उपयोगी बनाना है। इन्हीं सिद्धांतों से आलोकित पथ पर, हमारी विकास यात्रा को निरंतर आगे बढ़ते रहना चाहिए।
मेरे प्यारे देशवासियो,
इतनी विशाल आबादी वाले हमारे देश को खाद्यान्न एवं डेयरी उत्पादों में आत्म-निर्भर बनाने वाले हमारे किसान भाई-बहनों का सभी देशवासी हृदय से अभिनंदन करते हैं। विपरीत प्राकृतिक परिस्थितियों, अनेक चुनौतियों और कोविड की आपदा के बावजूद हमारे किसान भाई-बहनों ने कृषि उत्पादन में कोई कमी नहीं आने दी। यह कृतज्ञ देश हमारे अन्नदाता किसानों के कल्याण के लिए पूर्णतया प्रतिबद्ध है।
जिस प्रकार हमारे परिश्रमी किसान देश की खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने में सफल रहे हैं, उसी तरह, हमारी सेनाओं के बहादुर जवान, कठोरतम परिस्थितियों में, देश की सीमाओं की सुरक्षा करते रहे हैं। लद्दाख में स्थित, सियाचिन व गलवान घाटी में, माइनस 50 से 60 डिग्री सेन्टीग्रेड तापमान में, सब कुछ जमा देने वाली सर्दी से लेकर, जैसलमर में, 50 डिग्री सेन्टीग्रेड से ऊपर के तापमान में, झुलसा देने वाली गर्मी में – धरती, आकाश और विशाल तटीय क्षेत्रों में – हमारे सेनानी भारत की सुरक्षा का दायित्व हर पल निभाते हैं। हमारे सैनिकों की बहादुरी, देशप्रेम और बलिदान पर हम सभी देशवासियों को गर्व है।
खाद्य सुरक्षा, सैन्य सुरक्षा, आपदाओं तथा बीमारी से सुरक्षा एवं विकास के विभिन्न क्षेत्रों में, हमारे वैज्ञानिकों ने अपने योगदान से राष्ट्रीय प्रयासों को शक्ति दी है। अन्तरिक्ष से लेकर खेत-खलिहानों तक, शिक्षण संस्थानों से लेकर अस्पतालों तक, वैज्ञानिक समुदाय ने हमारे जीवन और कामकाज को बेहतर बनाया है। दिन-रात परिश्रम करते हुए कोरोना-वायरस को डी-कोड करके तथा बहुत कम समय में ही वैक्सीन को विकसित करके, हमारे वैज्ञानिकों ने पूरी मानवता के कल्याण हेतु एक नया इतिहास रचा है। देश में इस महामारी पर काबू पाने में, तथा विकसित देशों की तुलना में, मृत्यु दर को सीमित रख पाने में भी हमारे वैज्ञानिकों ने डॉक्टरों, प्रशासन तथा अन्य लोगों के साथ मिलकर अमूल्य योगदान दिया है। इस प्रकार, हमारे सभी किसान, जवान और वैज्ञानिक विशेष बधाई के पात्र हैं और कृतज्ञ राष्ट्र गणतन्त्र दिवस के शुभ अवसर पर इन सभी का अभिनंदन करता है।
प्यारे देशवासियो,
पिछले वर्ष, जब पूरी मानवता एक विकराल आपदा का सामना करते हुए ठहर सी गई थी, उस दौरान, मैं भारतीय संविधान के मूल तत्वों पर मनन करता रहा। मेरा मानना है कि बंधुता के हमारे संवैधानिक आदर्श के बल पर ही, इस संकट का प्रभावी ढंग से सामना करना संभव हो सका है। कोरोना-वायरस रूपी शत्रु के सम्मुख देशवासियों ने परिवार की तरह एकजुट होकर, अनुकरणीय त्याग, सेवा तथा बलिदान का परिचय देते हुए एक-दूसरे की रक्षा की है। मैं यहां उन डॉक्टरों, नर्सों, स्वास्थ्य-कर्मियों, स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े प्रशासकों और सफाई-कर्मियों का उल्लेख करना चाहता हूं जिन्होंने अपनी जान जोखिम में डालकर पीड़ितों की देखभाल की है। बहुतों ने तो अपने प्राण भी गंवा दिए। इनके साथ-साथ, इस महामारी ने, देश के लगभग डेढ़ लाख नागरिकों को, अपनी चपेट में ले लिया। उन सभी के शोक संतप्त परिवारों के प्रति, मैं अपनी संवेदना प्रकट करता हूँ। कोरोना के मोर्चे पर अग्रिम पंक्ति के योद्धाओं के रूप में हमारे साधारण नागरिकों ने असाधारण योगदान दिया है। आने वाली पीढ़ियों के लोग जब इस दौर का इतिहास जानेंगे, तो इस आकस्मिक संकट का जिस साहस के साथ आप सबने सामना किया है उसके प्रति, वे, श्रद्धा से नतमस्तक हो जाएंगे।
भारत की घनी आबादी, सांस्कृतिक परम्पराओं की विविधता तथा प्राकृतिक व भौगोलिक चुनौतियों के कारण, कोविड से बचाव के उपाय करना, हम सब के लिए, कहीं अधिक चुनौती भरा काम था। चुनौतियों के बावजूद, इस वायरस के प्रकोप पर काबू पाने में, हम काफी हद तक सफल रहे हैं।
इस गंभीर आपदा के बावजूद हमने, अनेक क्षेत्रों में अपनी गतिविधियों को सफलता-पूर्वक आगे बढ़ाया है। इस महामारी के कारण, हमारे बच्चों और युवा पीढ़ी की शिक्षा प्रक्रिया के बाधित होने का खतरा पैदा हो गया था। लेकिन हमारे संस्थानों और शिक्षकों ने नई टेक्नॉलॉजी को शीघ्रता से अपनाकर यह सुनिश्चित किया कि विद्यार्थियों की शिक्षा निरंतर चलती रहे। बिहार जैसी घनी आबादी वाले राज्य तथा जम्मू-कश्मीर व लद्दाख जैसे दुर्गम व चुनौती भरे क्षेत्रों में स्वतंत्र, निष्पक्ष और सुरक्षित चुनाव सम्पन्न कराना हमारे लोकतन्त्र एवं चुनाव आयोग की सराहनीय उपलब्धि रही है। टेक्नॉलॉजी की सहायता से न्यायपालिका ने, न्याय उपलब्ध कराने की प्रक्रिया जारी रखी। ऐसी उपलब्धियों की सूची बहुत बड़ी है।
आर्थिक गतिविधियों को शुरू करने के लिए, अन-लॉकिंग की प्रक्रिया को सावधानी के साथ, चरणबद्ध तरीके से लागू किया गया। यह तरीक़ा कारगर सिद्ध हुआ तथा अर्थ-व्यवस्था में फिर से मजबूती के संकेत दिखाई देने लगे हैं। हाल ही में दर्ज की गयी जी.एस.टी. की रेकॉर्ड वृद्धि और विदेशी निवेश के लिए आकर्षक अर्थव्यवस्था के रूप में भारत का उभरना, तेजी से हो रही हमारी ‘इकनॉमिक रिकवरी’ के सूचक हैं। सरकार ने मध्यम और लघु उद्योगों को प्रोत्साहित किया है; आसान ऋण प्रदान करके उद्यम-शीलता को बढ़ावा दिया है और व्यापार में इनोवेशन को प्रेरित करने के लिए अनेक कदम उठाए हैं।
मेरे प्यारे देशवासियो,
विगत वर्ष की विपरीत परिस्थितियों ने हमारे उन संस्कारों को जगाया है जो हम लोगों के हृदय में सदा से विद्यमान रहे हैं। समय की मांग के अनुरूप, हमारे देशवासियों ने, हर क्षेत्र में, अपनी क्षमताओं का प्रदर्शन किया और खुद से पहले, दूसरों के हित को प्राथमिकता दी। समस्त मानवता के लिए सहानुभूति, सेवा और बंधुता की इन गहरी भावनाओं ने ही, हजारों वर्षों से हमें एकजुट बनाए रखा है। हम भारतवासी, मानवता के लिए जीते भी हैं और मरते भी हैं। इसी भारतीय आदर्श को महान कवि मैथिली शरण गुप्त ने इन शब्दों में व्यक्त किया है:
उसी उदार की सदा, सजीव कीर्ति कूजती;
तथा उसी उदार को, समस्त सृष्टि पूजती।
अखण्ड आत्मभाव जो, असीम विश्व में भरे¸
वही मनुष्य है कि जो, मनुष्य के लिये मरे।
मुझे विश्वास है कि मानव मात्र के लिए असीम प्रेम और बलिदान की यह भावना हमारे देश को उन्नति के शिखर तक ले जाएगी।
मेरे विचार में, सन 2020 को सीख देने वाला वर्ष मानना चाहिए। पिछले वर्ष के दौरान प्रकृति ने बहुत कम समय में ही अपना स्वच्छ और निर्मल स्वरूप फिर से प्राप्त कर लिया था। ऐसा साफ-सुथरा प्राकृतिक सौंदर्य, बहुत समय के बाद देखने को मिला। इस प्रकार प्रकृति ने यह स्पष्ट संदेश दिया कि छोटे-छोटे प्रयास केवल मजबूरी नहीं, बल्कि बड़े प्रयासों के पूरक होते हैं। मुझे विश्वास है कि भविष्य में इस तरह की महामारियों के खतरे को कम करने के उद्देश्य से, जलवायु परिवर्तन के मुद्दे को, विश्व-स्तर पर, प्राथमिकता दी जाएगी।
मेरे प्यारे देशवासियो,
आपदा को अवसर में बदलते हुए, प्रधानमंत्री ने ‘आत्म-निर्भर भारत अभियान’ का आह्वान किया। हमारा जीवंत लोकतंत्र, हमारे कर्मठ व प्रतिभावान देशवासी – विशेषकर हमारी युवा आबादी – आत्म-निर्भर भारत के निर्माण के हमारे प्रयासों को ऊर्जा प्रदान कर रहे हैं। वस्तुओं और सेवाओं के लिए हमारे देशवासियों की मांग को पूरा करने के घरेलू प्रयासों द्वारा तथा इन प्रयासों में आधुनिक टेक्नॉलॉजी के प्रयोग से भी इस अभियान को शक्ति मिल रही है। इस अभियान के तहत माइक्रो, स्मॉल और मीडियम इंटरप्राइजेज़ को बढ़ावा देकर तथा स्टार्ट-अप इको सिस्टम को और अधिक मजबूत बनाकर आर्थिक विकास के साथ-साथ रोजगार उत्पन्न करने के भी कदम उठाए गए हैं। आत्म-निर्भर भारत अभियान एक जन-आंदोलन का रूप ले रहा है।
यह अभियान हमारे उन राष्ट्रीय संकल्पों को पूरा करने में भी सहायक होगा जिन्हें हमने नए भारत की परिकल्पना के तहत, देश की आजादी के 75वें वर्ष तक, यानि सन 2022 तक हासिल करने का लक्ष्य रखा है। हर परिवार को बुनियादी सुविधाओं से युक्त पक्का मकान दिलाने से लेकर, किसानों की आय को दोगुना करने तक, ऐसे महत्वपूर्ण लक्ष्यों की तरफ बढ़ते हुए हम अपनी आजादी की 75वीं वर्षगांठ के ऐतिहासिक पड़ाव तक पहुंचेंगे। नए भारत के समावेशी समाज का निर्माण करने के लिए हम शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषाहार, वंचित वर्गों के उत्थान और महिलाओं के कल्याण पर विशेष बल दे रहे हैं।
हमारी यह मान्यता है कि विपरीत परिस्थितियों से कोई न कोई सीख मिलती है। उनका सामना करने से हमारी शक्ति व आत्म-विश्वास में वृद्धि होती है। इस आत्म-विश्वास के साथ, भारत ने कई क्षेत्रों में बड़े कदम उठाए हैं। पूरी गति से आगे बढ़ रहे हमारे आर्थिक सुधारों के पूरक के रूप में, नए क़ानून बनाकर, कृषि और श्रम के क्षेत्रों में ऐसे सुधार किए गए हैं, जो लम्बे समय से अपेक्षित थे। आरम्भ में, इन सुधारों के विषय में आशंकाएं उत्पन्न हो सकती हैं। परंतु, इसमें कोई संदेह नहीं है कि किसानों के हित के लिए सरकार पूरी तरह समर्पित है।
सुधारों के संबंध में, शिक्षा के क्षेत्र में किए गए व्यापक सुधार उल्लेखनीय हैं। ये सुधार भी लंबे समय से अपेक्षित थे। ये भी, कृषि एवं श्रम सुधारों के समान ही महत्वपूर्ण हैं, लेकिन कहीं अधिक बड़ी संख्या में लोगों के जीवन को सीधे प्रभावित करने वाले हैं। 2020 में घोषित ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति’ में प्रौद्योगिकी के साथ-साथ परंपरा पर भी ज़ोर दिया गया है। इसके द्वारा एक ऐसे नए भारत की आधारशिला रखी गई है जो अंतर्राष्ट्रीय मंच पर ज्ञान-केंद्र के रूप में उभरने की आकांक्षा रखता है। नई शिक्षा प्रणाली, विद्यार्थियों की आंतरिक प्रतिभा को विकसित करेगी और उन्हें जीवन की चुनौतियों का सामना करने में सक्षम बनाएगी।
सभी क्षेत्रों में संकल्प और दृढ़ता के साथ आगे बढ़ते जाने के अच्छे परिणाम सामने आ रहे हैं। कोरोना की लगभग एक वर्ष की अप्रत्याशित अग्नि-परीक्षा के बावजूद, भारत हताश नहीं हुआ है, बल्कि आत्म-विश्वास से भरपूर होकर उभरा है। हमारे देश में आर्थिक मंदी, थोड़े समय के लिए ही रही। अब, हमारी अर्थ-व्यवस्था पुनः गतिशील हो गयी है। आत्म-निर्भर भारत ने, कोरोना-वायरस से बचाव के लिए अपनी खुद की वैक्सीन भी बना ली है। अब विशाल पैमाने पर, टीकाकरण का जो अभियान चल रहा है वह इतिहास में अपनी तरह का सबसे बड़ा प्रकल्प होगा। इस प्रकल्प को सफल बनाने में प्रशासन एवं स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े लोग पूरी तत्परता से कार्यरत हैं। मैं देशवासियों से आग्रह करता हूं कि आप सब, दिशा-निर्देशों के अनुरूप, अपने स्वास्थ्य के हित में इस वैक्सीन रूपी संजीवनी का लाभ अवश्य उठाएं और इसे जरूर लगवाएं। आपका स्वास्थ्य ही आपकी उन्नति के रास्ते खोलता है।
आज, भारत को सही अर्थों में “फार्मेसी ऑफ द वर्ल्ड” कहा जा रहा है क्योंकि हम अनेक देशों के लोगों की पीड़ा को कम करने और महामारी पर क़ाबू पाने के लिए, दवाएं तथा स्वास्थ्य-सेवा के अन्य उपकरण, विश्व के कोने-कोने में उपलब्ध कराते रहे हैं। अब हम वैक्सीन भी अन्य देशों को उपलब्ध करा रहे हैं।
मेरे प्यारे देशवासियो,
पिछले साल, कई मोर्चों पर, अनेक चुनौतियां हमारे सामने आईं। हमें, अपनी सीमाओं पर विस्तारवादी गतिविधियों का सामना करना पड़ा। लेकिन हमारे बहादुर सैनिकों ने उन्हें नाकाम कर दिया। ऐसा करते हुए हमारे 20 जवान वीरगति को प्राप्त हो गए। सभी देशवासी उन अमर जवानों के प्रति कृतज्ञ हैं। हालांकि हम शांति के लिए अपनी प्रतिबद्धता पर अटल हैं, फिर भी हमारी थल सेना, वायु सेना और नौसेना – हमारी सुरक्षा के विरुद्ध किसी भी दुस्साहस को विफल करने के लिए पूरी तैयारी के साथ तैनात हैं। प्रत्येक परिस्थिति में, अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करने के लिए हम पूरी तरह सक्षम हैं। भारत के सुदृढ़ और सिद्धान्त-परक रवैये के विषय में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय भली-भांति अवगत है।
भारत, प्रगति के पथ पर आगे बढ़ते हुए, विश्व-समुदाय में अपना समुचित स्थान बना रहा है। पिछले कुछ वर्षों में, भारत का प्रभाव-क्षेत्र और अधिक विस्तृत हुआ है तथा इसमें विश्व के व्यापक क्षेत्र शामिल हुए हैं। जिस असाधारण समर्थन के साथ, इस वर्ष, भारत ने अस्थायी सदस्य के रूप में सुरक्षा-परिषद में प्रवेश किया है वह, इस बढ़ते प्रभाव का सूचक है। विश्व-स्तर पर, राजनेताओं के साथ, हमारे सम्बन्धों की गहराई कई गुना बढ़ी है। अपने जीवंत लोकतन्त्र के बल पर भारत ने, एक जिम्मेदार और विश्वसनीय राष्ट्र के रूप में अपनी साख बढ़ाई है।
इस संदर्भ में, यह हम सबके हित में है कि, हम अपने संविधान में निहित आदर्शों को, सूत्र-वाक्य की तरह, सदैव याद रखें। मैंने यह पहले भी कहा है, और मैं आज पुनः इस बात को दोहराऊंगा कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जीवन और विचारों पर मनन करना, हमारी दिनचर्या का हिस्सा होना चाहिए। हमें हर सम्भव प्रयास करना है कि समाज का एक भी सदस्य दुखी या अभाव-ग्रस्त न रह जाए। समता, हमारे गणतंत्र के महान यज्ञ का बीज-मंत्र है। सामाजिक समता का आदर्श प्रत्येक व्यक्ति की गरिमा सुनिश्चित करता है, जिसमें हमारे ग्रामवासी, महिलाएं, अनुसूचित जाति व जनजाति सहित अपेक्षाकृत कमजोर वर्गों के लोग, दिव्यांग-जन और वयो-वृद्ध, सभी शामिल हैं। आर्थिक समता का आदर्श, सभी के लिए अवसर की समानता और पीछे रह गए लोगों की सहायता सुनिश्चित करने के हमारे संवैधानिक दायित्व को स्पष्ट करता है। सहानुभूति की भावना परोपकार के कार्यों से ही और अधिक मजबूत होती है। आपसी भाईचारे का नैतिक आदर्श ही, हमारे पथ प्रदर्शक के रूप में, हमारी भावी सामूहिक यात्रा का मार्ग प्रशस्त करेगा। हम सबको ‘संवैधानिक नैतिकता’ के उस पथ पर निरंतर चलते रहना है जिसका उल्लेख बाबासाहब डॉक्टर भीमराव आंबेडकर ने 4 नवंबर, 1948 को संविधान के प्रारूप को प्रस्तुत करते समय, संविधान सभा के अपने भाषण में किया था। उन्होंने स्पष्ट किया था कि ‘संवैधानिक नैतिकता’ का अर्थ है – संविधान में निहित मूल्यों को सर्वोपरि मानना।
मेरे प्यारे देशवासियो,
हमारे गणतंत्र की स्थापना का उत्सव मनाने के इस अवसर पर मेरा ध्यान, विदेशों में बसे अपने भाई-बहनों की तरफ भी जा रहा है। प्रवासी भारतीय, हमारे देश का गौरव हैं। दूसरे देशों में बसे भारतीयों ने विभिन्न क्षेत्रों में कामयाबी हासिल की है। उनमें से कुछ लोग राजनैतिक नेतृत्व के उच्च-स्तर तक पहुंचे हैं, और अनेक लोग विज्ञान, कला, शिक्षा, समाज सेवा, और व्यापार के क्षेत्रों में बहुमूल्य योगदान कर रहे हैं। आप सभी प्रवासी भारतीय, अपनी वर्तमान कर्म-भूमि का भी गौरव बढ़ा रहे हैं। आप सबके पूर्वजों की भूमि भारत से, मैं आपको गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं देता हूं। हमारे सशस्त्र बलों, अर्ध-सैनिक बलों और पुलिस के जवान, प्रायः अपने परिवार-जन से दूर रहते हुए त्योहार मनाते हैं। उन सभी जवानों को मैं विशेष बधाई देता हूं।
मैं, एक बार फिर, आप सभी देशवासियों को गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं देता हूं।
धन्यवाद!
जय हिन्द!
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Source: PIB